Saturday, November 03, 2012

उस एक पुरानी चादर के, उधड़े से ताने-बानों में...

उस एक पुरानी चादर के
उधड़े से ताने-बानों में
बाँधी थीं मैंने कुछ यादें...

कुछ-एक अधूरी कवितायेँ
भूली-भटकी कुछ आशाएं
कुछ कही-अनकही सी बातें...

....पर लगता है ये चादर भी
अध्-लिखी कहानी-सी जैसी
हर रोज़ उधडती जायेगी

यादें, कवितायेँ, आशाएं..
जो इसमें खेला करती थीं
धीरे-धीरे खो जायेंगीं ||

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