Friday, May 06, 2011

बादल-बिजली की बिटियाएँ, धरती खेलने को आयीं...

It rained this evening, with incessant thunder-storm and lightening...

बिजली और तूफान से भरी बरसात...धूल-भरी अंधड़ आंधी... देवदार के पेड़ों में सनसनाती ठंडी हवाएं... बिजली के तारों पर अटका हुआ कोहरा... धुंए और धूल भरी सड़कें... सुबह की ओस... दहकती गर्मी की लूह... all these have remained some of the most wonderful companions and metaphors for the kaledioscope called life...
... each containing myriads of छोटी छोटी बातें/memories...

...and so, when it rained and thundered, I recalled many moments/words/ happenings... which make up the life

- like a poem "बादल-बिजली की बिटियाएँ, धरती खेलने को आयीं..." - dont even know if the original copy exists. I recall just this one line...
- like the two kids - one in my balcony, and the other one below - shouting at the top of their voices "सावधान! होशियार!... तूफानी दैत्य पधार रहे हैं!"

... and these two poems, written across 3-4 months, जब ज़िन्दगी नें एक करवट ली थी

One which I had blogged earlier here

मानता हूँ फिर बहेंगी आंधियां,
घनघोर बरसेंगी घटायें
टूट जायेंगे सभी सपने हमारे
बिजलियों की चोट खा कर,
बह चलेंगे अश्रु बन कर,
क्रूर हंस देंगी हवाएं

आज बन हम फूल जो मुस्का रहे,
कल सूख कर तिनका बनेंगे,
उजड़ कर उपवन हमारा
जलेगा शमशान जैसा
कली के आंसू बहेंगे...

कल तुम्हारे आंसुओं के साथ मैं भी बह चलूँगा,
आज तो लेकिन बुला लो,
अश्रु चाहे कल बनूँ, पर आज तो सपना बना कर,
प्रिये! आंखों में सुला लो...
- (३० मई '७४ Lucknow)

...and the other a few months later...

आज फिर बिजली चमकती है गगन में,
बह रहीं हैं आंधियां
रिमझिम भिगो देती हवाएं,
...पर न कोई स्वप्न अब सूने नयन में |

डबडबाये नयन में खारा नयन का नीर है अब,
बह नहीं सकता
कि जो कुछ देखते हैं नयन वह भी
खो ना जाए,
बहुत से वो फूल, जो मुरझा चुके हैं,
कहीं उनमे,
प्रेम का भ्रम हो ना जाए |

बस वही अनुभूति जो साथी जनम से
- पा रहा हूँ, खो रहा हूँ -
साथ है अब भी, मचलती पल रही है
बाँध कर खुद को, अभी बहके कदम से |

स्वप्न सब टूटे सहारे खो चुके हैं,
बस सहारा है कि तुमको दूं सहारा
है यही आधार, यह है अर्थ मेरा...
....इस भटकती नाव का तट खो गया पर,
मैं किसी का तट, किसी का अर्थ हूँ
...अब है यही अहसास प्यारा...
- (१८ अगस्त, १९७४, Nainital)

hmmm... my personal learning from the thunderstorm and such directionless ruminations:
we are and will remain बादल-बिजली की बिटियाएँ, धरती खेलने को आयीं...

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