Saturday, February 13, 2010

क्या जीवन का ध्येय यही है?...

I guess, I was lucky to have some remarkable co-travellers in life, when I was growing up - poets, activists, romantics, thinkers (as much as one can be one is in one's teens)... essentially us, who had this "sense of destiny" then...

Here are the verses written by one of them, I had met first time - I still remember the date, July 8th, 1970 - in the corridors of Colvin Taluquedar College, Lucknow... This became one of those cherished relationships, which has lasted a life-time - I attended his daughter's wedding this December - and realised that time flies... and one day we too will sail out of the Middle-Earth!

anyways, the verses:

जीवन के आगे जीवन है,
जीवन के पीछे जीवन है,
पर जीवन की खोज मृत्यु हो,
क्या जीवन का ध्येय यही है?...

जीवन कहाँ शांतिमय होगा,
जहां शांति है वहाँ ना जीवन,
पर मैं शांति खोजता फिरता
आदि शांतिमय, अंत शान्ति है,
शांति मध्य में भी मैं ढूँढू
क्या जीवन का ध्येय यही है?...

जीवन के तो अगणित पथ हैं,
हर पथ के अगणित राही हैं,
एक पथिक बन मैं भी जी लूं,
क्या जीवन का ध्येय यही है?...

वृक्ष एक बढ़ता जाता है,
नीचे एक पुष्प कुसुमित है,
वृक्ष कहे बढ़ाते जाना है,
फूल कहे जग महकाना है,
एक दूसरे से वोह पूंछे,
क्या जीवन का ध्येय यही है?...

पास बही जाती हो नदिया,
शीतल, चंचल, गहन सौम्य सी,
मेरा मन हो विकुल प्यास से,
पर मैं प्यासा बैठ किनारे,
बात जोहता रहूँ मेघ की,
क्या जीवन का ध्येय यही है?...

इधर हमें कर्त्तव्य पुकारे,
उधर ह्रदय कहता, जीने दो,
चीख-चीख कर आस कह रही,
मुझे बचाओ टूट रहीं हूँ,
मैं सुना, अनसुना सब कर दूं,
क्या जीवन का ध्येय यही है?...

जब आँखों से नीर बह चले,
और हूक सी उठे हदय में,
तब अपनी अमूल्य पीड़ा को,
भेंट चढ़ा दूं मुस्कानों की,
क्या जीवन का ध्येय यही है?...

जिस विशाल नभ की छाया में,
बाल्यकाल है अपना बीता,
जिसने भेजा चन्द्रकिरण को,
भरा हमारा अंतर रीता,
उस विशाल मंदिर को ताज कर,
विचरें इक छोटी कुटिया में,
क्या जीवन का ध्येय यही है?....

दो आँखे हैं, दो आंसू हैं,
चार नयन हैं, दो मुस्कानें
झुटला कर इस अटल सत्य को,
उतराऊं झूठे दर्शन में,
क्या जीवन का ध्येय यही है?...

मुझमें है मष्तिष्क, हृदय है,
मझमें काम, क्रोध, और भय है,
जो अपना है उसे दबा कर,
रूप देवता का कर लूं मैं,
क्या जीवन का ध्येय यही है?...

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